Sunday, 5 July 2020

सालो साल से यंही ठहरा है ये दरिया, समेटे अनगिनत कहानिया अपने अंदर 
मिले फुर्सत तो पड़ना ख़ामोशी इसकी , पाओगे तुम एक ठहराव अपने अंदर 
जुस्तजू है इसको भी मिलने की समंदर में मगर नसमझ अनजान है मेरी तरह 
इसको क्या पता ये न रहेगा फिर दरिया जो मिल गया ये जाके समंदर के अंदर। 

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