तख्तनशी होने को हमने भी आरोपे पे आरोपे के पुलिंदों का ढेर लगाया था
वो वक़्त लौट के फिर मुँह मेरे आएगा ये अनुमान तब हमने कहाँ लगाया था
खुश थे, तब अपनी बारी थी, तब वो और उसकी बातें लगती प्यारी प्यारी थी
वो वही है जहाँ था, पर अब न वो रहा प्यारा, न बातें लगती उसकी प्यारी प्यारी
Bohot khub
ReplyDeleteThanks
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