Tuesday, 12 November 2019

बरसो बाद वो टकरा गई हम से सड़क पे और देख के हम को मुँह मोड़ लिया उसने अजब सी हंसी आ गई होंठो पे यकायक कम से कम पहचान तो लिए ही हमे उसने।

Sunday, 10 November 2019

 छोटी सी बात होती है और फिर मुद्दे बड़े हो जाते है
मुद्दा सिर्फ इतना सा की सही क्या है
और लोग कोन गलत ,कोन सही मैं उलझ जाते है। .. रवि 
वो बेचारा ढूंढता रहा है साल महीने उस शख्स को
हर जगह खोजा मगर कंही भी उसके निशाँ न मिले
खोता तो मिल जाता बदले लोग कब कहाँ किसे मिले । 
बचपन मैं बरसता था बादल भी घनघोर जरा जम के
तब  उस पानी पे चलने वाले कागज के जहाज भी थे
न अब ऐसी बारिश है न वो बादल घनघोर बरसने वाले
न कागज के जहाज आज ,न आज उनको बनाने वाले 
महीने साल दिन ब दिन यूँ ही गुजरते जा रहे है
न हम अपने गम से खाली 
न हम उनके खयालो मैं आ रहे है 
मस्जिद की मीनार तले दबे मंदिर के कंगूरे भी अब बोल उठे है मंदिर वही बनेगा बोल दो अब छद्म धर्मनिरपेक्षता के लंगूरो से
देखने पर मेरे, जवाब में तुम, बेबात की हंसी न मिलाओ दिल गर नहीं मिलते, तो अच्छा है, हाथ भी न मिलाओ।
कब तक तन को यूँ ही नहलाते रहोगे कभी सोच को भी नेहला के देखो
खुद बदले खूब तुमने , कभी मैली सोच के भी कपडे बदल के तो देखो।