काश तब शायद कोमा लगा होता
न लगा होता पूर्ण विराम
तो
आज न कहानिया अपनी बेजुबान मरती
न ही सपने यू बिखर जाते, जो देखे साथ थे
थोड़ा तुम चलते थोड़ा मैं आगे बढ़ाता कदम
मिल के शायद दोनों मंजिल प् ही लेते हम
अगर न लगा होता पूर्ण विराम
बाहों मैं तुम्हारी कटती मेरी सुबो और शाम
कभी तुम रूठती कभी मैं मनाता तुम्हे
होता यही सब
अगर न लगा होता पूर्ण विराम।