Tuesday, 16 November 2021

 काश तब शायद कोमा लगा होता 

न लगा होता पूर्ण विराम 

तो 

आज न कहानिया अपनी बेजुबान मरती 

न ही सपने यू बिखर जाते, जो देखे साथ थे 


थोड़ा तुम चलते थोड़ा मैं आगे बढ़ाता कदम 

मिल के शायद दोनों मंजिल प् ही लेते हम 

अगर न लगा होता पूर्ण विराम 


बाहों मैं तुम्हारी कटती मेरी सुबो और शाम 

कभी तुम रूठती कभी मैं मनाता तुम्हे 

होता यही सब 

अगर न लगा होता पूर्ण विराम।


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