Monday, 6 February 2023

 कब रेत की तरह वक्त मुट्ठी से निकल गया ज़िंदगी बनाने मैं 

पता भी न चला 

आज भी न अपने खुश हमसे और न ज़िंदगी ही संवार सके हम।  

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