रोज़मर्रा की उलझनों ने हर पल को क़ैद कर रखा था,
सोचते ही रह गए, मगर चाहतों को रोक कर रखा था।
अब फ़ुर्सत में फ़ुर्सत है, मगर फ़ैसला लेना पड़ा,
कुछ अपने पुराने अफ़सानों को भी अलविदा कहना पड़ा।
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