Tuesday, 14 October 2025

 रोज़मर्रा की उलझनों ने हर पल को क़ैद कर रखा था,

सोचते ही रह गए, मगर चाहतों को रोक कर रखा था।


अब फ़ुर्सत में फ़ुर्सत है, मगर फ़ैसला लेना पड़ा,

कुछ अपने पुराने अफ़सानों को भी अलविदा कहना पड़ा।

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