उसके चाहने वालों में नाम हमारा भी शुमार है
यही बात न जाने कितनो लोगो को नागुजार है
उसके चाहने वालों में नाम हमारा भी शुमार है
यही बात न जाने कितनो लोगो को नागुजार है
बड़ी खुश थी कली गुलाब की महका सा फूल बनके
उसे क्या पता था फूल अक्सर तोड़ लिए जाया करते है
दिखाने को हँसी चेहरे पे और वो चहरे पे ढेर सारा सकून रखता है
किसे क्या पता वो शक्श हंसी की आड़ में
गम ज़माने भर का दिल मैं छुपाये फिरता है।
काफी वक़्त हो गया बर्बाद यूँही घिसते घिसते पन्नो को
अब दिल करता है शायरी किसी के दिल पे लिखी जाये
सुना पथरो को भी तरास देते लोग और उन्हें अमर कर देते है
हम कब से बुत बने बैठे, औरकोई प्यार से देखता तक नहीं
तारीफे भी मिली और हर शक्श बड़े ही प्यार से मिला
पर जब कभी मिला जो भी मिला सिर्फ काम से मिला
मसरूफ हो तुम ज़िंदगी की जद्दोजहद में दिन रात और रात दिन
रिश्ते सिर्फ मरते नहीं वक़्त न होने से, वो मरते तबज्जो के भी बिन
कुछ इस तरह भी कभी मैं रिश्तो को निभा दिया करता हूँ
टूट न जाये रिश्ते इसलिए बेवजह उन्हें मना लिया करता हूँ
रूठ जाते है वो अक्सर सोच के , के हम उन्हें मना ही लेंगे
ख़ुशी की खातिर उनकी
अपने जज्बात दिल मैं ही दबा लिया करता हूँ
आदतें ख़राब है उनकी
जो बात बात पे छोड़ जाने की बात करते हो
अब लगता मजाक ही था
जो तुम साथ ज़िंदगी जीने की बार करते हो
पलके भारी है आँखे नम दिल मैं दर्द सा उठा है
लगता है उस बेवफा ने
फिर से किसी को धोका दिया है।
याद ही रह गई है अब बस आँखों मैं उनकी
गुजरती थी हमारी शाम बाहो मैं जिनकी
मुद्दते निकल गई देखे उन्हें रूबरू अब तो
देखे बिना न गुजरता था दिन सूरत जिनकी।
जाने वाला चला गया मगर देके गया ज़िंदगी भर का गम ....
अब यादें ही है सिर्फ उनकी पास और तनहा है हम...
काफी दिन हुए उस गली में गए ...
लगता है अब कोई हमे याद नहीं करता
पागल के पागलपन मैं भी एक मजा है
जिसको चाहो उसका न मिल पाना एक सजा है
दूर से ही दिल का बेहाल यूँ बहल जाना अच्छा है
इधर उधर निकल जाता है क्या करे दिल तो बच्चा है।
अश्क़ ही है जो बार बार आके बता जाते है
के तुम अभी भी दिल मैं हो
वरना हम कब के भूले बैठे है तुम्हारे अक्स को
काबू मैं रहके बेकाबू होना भी एक अलग ही अंदाज है
दुनिया का समझना तुम्हे पागल
उन्हें क्या पता यह पागलपन ही तुम्हारा मिजाज है।
तब न नज़र ही पढ़ पाई तुम्हारी न इशारे ही तुम पढ़ पाए
अब हम हो गए कबाड़ अब शायद ही तुम्हारे काम आये।
जिसे नासमझ समझे वही एक इकलौता था
जो समझता था हमारी समझ को और हमें
अब वो करता नहीं बात , मिलता भी नहीं हमसे
सुना समझदार हो गया जिसे नासमझ हम समझें
दिनों के बाद न जाने कितने दिनों के बाद
फुर्सत के कुछ लम्हे उधार लिए
ऐसा लगा जैसे यु ही चल रहे थे अब तक
आज ही है जो हमने कुछ पल है जिए।
खवाब है तो ज़िन्दगी है और ज़िंदगी की रूहानियत
वरना आँख खुलती है और फिर सब कुछ हक़ीकत।
क्या लिखे अब लिखने को कुछ बाकी ही नहीं
हम वो जाम है जिसका अब कोई साकी नहीं
जाना कहाँ है तुम्हे अब दूर हमारी शायरी से
आगे आगे देखिये धीरे धीरे आप भी
दीवाने हो जाएंगे हमारी आवारगी के
ज़िंदगी कट रही है या काट रहे है कुछ भी समझ नहीं
कोई पूछे सब ठीक है ज़िंदगी में
इतनी भी किसी को कोई गर्ज नहीं।
ज़िंदगी ही नहीं अब तो हवा भी परेशान करने लगी है मुझ को
जब कभी फुर्सत में बेठू, तब तपती गर्मी से लगती है मुझ को
पहले इसी तपती हवा मैं मिलो नाप दिया करते थे उनके लिए
साथ वो नहीं, बेजार कर दिया अब इस सर्द माहौल ने मुझको
जब कभी उसने वो सब कर दिया जिसकी हमने जुस्तजू ख्वाब में भी न की थी
होगी इसके पीछे कोई गहरी वजह , तब तब यह बोल के सकूं दिया है खुद को।
दिल पर उनका हक था हमारे, तब तक लब्ज साथ थे...
वो गया छोड के, साथ वो, अपने सभी लब्ज भी ले गया।