Tuesday, 9 April 2019

पहले भी तुम कई बार गए हो एक बार नहीं बार बार गए हो अब फिर से जाओगे तुम ठगे ठुकरा दो ६ हजार सखे काम माँगो न मांगो भीख मुफ्त से बढ़ती कामचोरी भैया गरीबी कभी न हटे ठुकरा दो ६ हजार सखे दिया मोके पे मोके उनको दिए तुमने सालो पे साल इस बार और दिखा दो ठेंगा ठुकरा दो ६ हजार सखे


किसी अन्य द्वारा लिखी पंक्तियों से प्रेरणा ले कुछ पंक्तियाँ

Friday, 5 April 2019

जब कभी टकरा जाओ उससे तो बोलता था सकपका सा जाता है मुझे देख कर क्यों तू कल हुआ चेकअप, तो दिमाग मैं कुछ नहीं ,मगर आँखों मैं ढेर सारा गंद निकला उसकी।
राजनीती है ही कुछ ऐसी, कुछ की संवेदनाये मर जाती है। सुना था बचपन में, राजनीती में, माँ बेटे की बलि चढ़ाती है। राहुल बोले, मम्मी बोली कमरे में आके, बेटा सत्ता जहर है , फिर भी न जाने क्यों , बेटे को वो जहर पिलाना चाहती है।

देखो ये है राजनीति।अब बीजेपी शिवसेना भाई भाई है
आप ने भी कांग्रेस के तलवे चाटने की अर्जी लगाई है
लगभग मना कर दिया, मगर आस फिर भी बाकी है
न जाने क्या होना है आगे, यह तो सिर्फ अभी झांकी है
बचपन में कुछ बच्चे होते थे जो खुद हर बार सिपाही बनते थे और समझते थे की वो सिपाही है और दूसरा चोर है आज वही बड़े होके दुसरो के नाम के आगे चौकीदार लिखने को सच का चौकीदार समझ रहे है।
हर एक शख्स वाकिफ है उसकी हर करतूत और कारनामो से मगर कहते है वो इज्ज़त अपने हाथ है नंग से लड़ा नहीं करते कीचड़ साफ़ करने के लिए हमेशा कीचड़ में उतरा नहीं करते मगर भूल बैठे है वो, अपनी शराफत मैं एक बात बहुत ज़रूरी पागल कुत्तो का इलाज जरूरी उन्हें यूही खुला छोड़ा नहीं करते।
मुझे छाँव देकर जो खड़े रहे बिना शिकायत धूप में ऐसा शख्स सिर्फ मिल सकता है पिता के रूप में जो मांगे वो मिल जाये, बचपन हो या हो जवानी इतना तो तू भी सीख ले पिता से , ए ज़िंदगानी।
कभी मुझ से कभी ज़माने से क्यों पूछता है तू अपने बारे में शायद तेरे जमीर ने जो बताया तुझे पसंद नहीं अपने बारे में
दूसरों को दे ले दोष तू , बेशक उन पर गालियां निकाल, तेरा नहीं होना कुछ, पहले अपने मन की तू गंद निकाल।
बात कभी मानते नहीं मगर जैसे ही कुछ कह दो बुरा मान जाते है। यह वही लोग है जो अपने ज्ञान देने के पर्चे दीवारों पे छपवाते है।
युही दर बदर फिरता रहता है अक्सर ख्याल मेरा 
न जाने कब कैसे कहाँ मिलेगा इससे जवाब तेरा 
रौनके बाजारों की भी लगती है आजकल दिखावे सी 
जब भी दिखे उसके पीछे खड़ा विकराल अँधेरा घना 
सच्चाई पताका फिराने वाले भी आजकल मोह मैं घिरे 
कहते है थोड़ा धीमा बोलो कोई बईमान हमे सुन ना ले 
वह जो भरते थे दम मर मिटने का देश के लिए एक दिन 
वही मिले खड़े पीछे बहुत पीछे जब लूट रहा था देश मेरा 
बाते करने और बनाने मैं है माहिर हर एक बंदा मेरे देश का 
गूंगा निकला वह हर शक्श , मौका जब मिला बोलने का
ए ज़िंदगी कभी तो मिलेगी तू और देगी जवाब मेरा 
या युही दर बदर फिरता रहेगा ये जो है ख्याल मेरा
न आने से भी चल रहा है काम यहाँ,तुम ए दोस्त आके क्या करोगे 
बहुत अर्जित कर लिया तुमने,अब तुम और कमा के क्या करोगे
वैसे भी सब हो गए है इतने संबल के अच्छा चल लेते है बिन तुम्हारे 
वैसे अब तो ऐसे हालत है तुम आ भी जाओ तो क्या उखाड़  लोगे
नौकरी भी एक अजब गजब कहानी है 
रोज नित नए आते है प्रस्ताव नौकरी के 
जब तक है हाथ मैं आपके नौकरी 
और जैसे ही गई वह नौकरी भैया आपकी 
तो ना आते प्रस्ताव नए न ही कोई बुलाबे 
आदमी भी सोचे किस्मत ख़राब है अपनी 
या नौकरी के बाजार मैं हुआ है कोई लोचा 
न जाने कँहा गए वह प्रस्ताव और बुलाबे 
रिज्यूम भी अब तो अपडेट हो गया कईबार 
हे एच आर अब तो बुला ही लो हमे एक बार।
ना जाना था कंही ना जाने की चाह है मगर फिर भी सफर  करने को मजबूर हूँ मैं 
एक बस के कंडेक्टर की तरह।  
वो जो बनते थे सब से बड़े दानवीर और समझते थे लोग जिन्हे सरताज अपना 
पड़ा जो मौका आज तो वो  मिलते है आस्तीन के सांप की तरह।  
भरते थे जो दम के दे देंगे अपनी जान भी तेरे लिए गर मौका पड़ा कभी ज़िंदगानी मैं 
वही सब आगे खंजर लिए खड़े मिले कसाई की तरह 
अपने को खुद फजीयत  से बचाने के लिए और उबारने को जेहमत से अपने को
वो  शख़्स न जाने कितने को डूबा गया तूफ़ान की तरह 
खुद की सकशियत पे ना लग जाये दाग या कोई कलंक अपनी करतूतो से उसपे 
लोगो के कंधो को इस्तेमाल किया उसने अपनी जमानत की तरह 
थोड़ा करता जो साहस तो शायद निकल जाती कस्ती मजधार से उसकी भी अपनी भी 
मगर वो  किनारे पे खड़ा रहा एक ज़िद्दी बुत की तर। 
फूलो की तरह मुस्कान तेरी
शर्माना तेरा मेरी घबराहट सा
चेहरा तेरा कँवल की  तरह
जुल्फों का गुच्छा काले बदल सा
अंग तेरे  कलियों की तरह
गुस्सा  तेरा  एक बालक सा
हर अदा एक अदा है तेरी निराली
मगर प्यार तेरा मुझ पागल  सा।
तुम हो मेरी अब इज़्ज़त , अब रखना तुम  लाज हमारी
सहूँगा हर कष्ट तुम्हारा हसके,चाहे हो कितना ही  भारी
 ज़माना है ख़राब , देख लेना कभी कभी  नज़र से हमारी
जो करना सोचकर करना , तुम ना करना कभी जल्दबाजी
सारे सुख मेरे तुम्हारे,पर साथ लेके चलना तुम वफ़ा हमारी
जब बुलाये प्यार मेरा, तब तब तुम रखना चलने की तैयारी
मुझको चाहने के लिए, हर सांस मेरी रहेगी ऋणी सदा तुम्हारी
तुम न जाना दूर हमसे , तुम हो मुझ को अपने प्राणो से प्यारी
त्याग मोहब्बत है, मगर रहेगी सदा एक ही जान हमारी तुम्हारी
परिपक्प है हम तुम,समझेंगे ज़िंदगी को की कभी न टूटे अपनी यारी।
तुम्हे क्या लगा था की तुम ना होंगे तो रात न होगी 
या दिन न निकलेगा या शाम न होगी 
रात भी थी दिन भी था शाम भी थी मगर वो बात न थी 
मुझे तो गुम्मा भी न था की ऐसा भी कोई दिन आएगा 
की जब तुम मेरे साथ न होगी 
मौत हक़ीक़त है इलम है मुझको और बाक़िफ़ हूँ मैं इससे 
मगर जब तेरी बात आई तो जान कर भी अनजान बना मैं 
मालूम न था हक़ीक़त कुछ ऐसी होगी 
तेरे रूठ  के मान जाने को कई बार देखा और सहा है मैंने 
मगर हर बार तेरा वापस आके मुस्कुराना भी पता है मुझे 
न पता था की इस बार लम्बी जुदाई होगी 
ना  मजीद को जानते है , ये ना  मंदिर को पहचानते है 
ये जवान सिर्फ भारत माता की आन पे लड़ना जानते है 
इनको आरज़ू नहीं , ना चाह रहती है अपने गुणगान की 
ये तो सिर्फ, तिरेंगे की आन के लिए  मर मिटना जानते है 
आशिक़ है कई , नाम जिनके लैला  मजनू शीरी  फरहाद 
मगर ये ऐसे आशिक़, जो वतन को अपना सनम मानते है 
कुछ मर मिटे  दौलत पे, कुछ सरफिरे मजहब के नाम पे 
और यह है के,तिरंगे को अपना खूबसूरत कफ़न मानते है 
सोता रहता हूँ , अपने घर मैं चैन से परिवार के साथ मैं 
वो रहते है कैसे, हम खुदगर्ज लोग यह कहाँ जानते है 
कहते है कुछ लोग, नौकरी है और  मिलता है पैसा उन्हें 
मगर कोई उनसे पूछे 
पैसे लेके, जो जाये जानके मरने ,वो ऐसे कितनो को जानते है 
ना  मजीद को जानते है , ये ना  मंदिर को पहचानते है 
ये जवान सिर्फ भारत माता की आन पे लड़ना जानते है।  
वो जो करता था दावे सब से अलग है और पका हुआ है वो
थोड़ा जो दबाया, उसी मैं से सब से ज़्यदा बचपना निकला
ठीक था तब तक जब तक सब कुछ उसके मन जैसा हुआ
जो दिखा दिया आइना , महफ़िल से वो रोता हुआ निकला 
न मालूम मंजिल न ही रास्ते की खबर है 
यह दिल आजकल  बड़ा ही बेखबर है 
चलता रहता हूँ मिलो युही सुबहशाम 
आज कल दिल पे तेरी यादो का असर है।  
जब मिले जिससे मिले हम हर दफा खुल के ही मिले 
कुछ इस वजह से ही दुश्मन है क्यों सब हम से मिले 
गलती उसकी की नहीं जाते करीब उसके अक्सर लोग 
और उस पर तोहमत हम पे यह है के 
हम क्यों हर किसी से बांह फैला के मिले 
सुनते थे वो जो गाने उसके लगा के हैडफ़ोन अपने कानो मैं
कह दी जो दिल की बात देखो बंदा वही अब बेसुरा हो गया। .रवि

सोनू निगम