तुम्हे क्या लगा था की तुम ना होंगे तो रात न होगी
या दिन न निकलेगा या शाम न होगी
रात भी थी दिन भी था शाम भी थी मगर वो बात न थी
मुझे तो गुम्मा भी न था की ऐसा भी कोई दिन आएगा
की जब तुम मेरे साथ न होगी
मौत हक़ीक़त है इलम है मुझको और बाक़िफ़ हूँ मैं इससे
मगर जब तेरी बात आई तो जान कर भी अनजान बना मैं
मालूम न था हक़ीक़त कुछ ऐसी होगी
तेरे रूठ के मान जाने को कई बार देखा और सहा है मैंने
मगर हर बार तेरा वापस आके मुस्कुराना भी पता है मुझे
न पता था की इस बार लम्बी जुदाई होगी
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