Friday, 5 April 2019

ना  मजीद को जानते है , ये ना  मंदिर को पहचानते है 
ये जवान सिर्फ भारत माता की आन पे लड़ना जानते है 
इनको आरज़ू नहीं , ना चाह रहती है अपने गुणगान की 
ये तो सिर्फ, तिरेंगे की आन के लिए  मर मिटना जानते है 
आशिक़ है कई , नाम जिनके लैला  मजनू शीरी  फरहाद 
मगर ये ऐसे आशिक़, जो वतन को अपना सनम मानते है 
कुछ मर मिटे  दौलत पे, कुछ सरफिरे मजहब के नाम पे 
और यह है के,तिरंगे को अपना खूबसूरत कफ़न मानते है 
सोता रहता हूँ , अपने घर मैं चैन से परिवार के साथ मैं 
वो रहते है कैसे, हम खुदगर्ज लोग यह कहाँ जानते है 
कहते है कुछ लोग, नौकरी है और  मिलता है पैसा उन्हें 
मगर कोई उनसे पूछे 
पैसे लेके, जो जाये जानके मरने ,वो ऐसे कितनो को जानते है 
ना  मजीद को जानते है , ये ना  मंदिर को पहचानते है 
ये जवान सिर्फ भारत माता की आन पे लड़ना जानते है।  

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