Tuesday, 14 October 2025

 जिस शख़्स की थोड़ी-सी कामयाबी देखकर जलते हो तुम आज कल,
वो भी कभी तुम्हारी ही तरह गिरा था  फर्क बस इतना है, वो उठा बार-बार।
जलन छोड़, मेहनत से नाता जोड़ ऐ दोस्त,
किस्मत भी झुकती है उसी के आगे जो हार मानता नहीं बार-बार।

 ज़िंदगी में,

जब-जब जैसा किरदार पड़ा, बना लिया हमने।
हम सिर्फ़ अच्छे कहाँ —
बुराई भी बेहिसाब है अपने अंदर।


मिलता ही कहाँ है वो सब कुछ जिसे चाहता है ज़िंदगी में, आदमी
उसे पाने की चाहत में उल्टा, जो है, उसे भी खोए चला जा रहा है आदमी।

 जब कभी भी मिले, मिले मुझे सब देवता लोग,

एक मैं ही हूँ जो करता हूँ ग़लतियों पे ग़लतियाँ,
बाकी सब ज्ञानी बहुत हैं।

 ज़िंदगी अगर शुरू से आसान होती,

तो लोग रब को याद ही क्यों करते।
थोड़े हिचकोले ज़िंदगी में ,ही तो बताते हैं,
हारना नहीं है — अभी सफ़र बाक़ी बहुत है।

 


भारी दिल और आकाश के घने बादल एक ही तरह के होते हैं,
कि थोड़ा सा पानी बहा नहीं और राहत मिल गई।

 कदम हर कदम पे सिखाएं ही जा रही हैं जिंदगी, 

समझो हमे सातो जन्म इसी जन्म में गुजारने हो जैसे।

 Madari ke bandar thak gaya karke uchal kood

pakde ek dusre ki pooch dono khele khoob

dono khele khoob bhaiya done khele khoob

ek idhar lagaye gulati duja udhar lagaye 

tamaasha dekh rahi public mand mand muskaye

 जो फ़सल हरी भरी आज नज़र आती है, कल दर्द की कहानी सुनती है।

 वक़्त लेता है हिसाब हर एक फैसले का,

 बच्चा भी पुरखो के बोझ धोते हैं।

 रवि, जो सफर तुमने चुना है अपने लिए,

 अब उस रास्ते में चाहे गड्ढे आएं, ब्रेकर हों या कठिन चढ़ाइयाँ — 

अब यह सफर मंज़िल तक जारी रखना ही पड़ेगा।

 काफ़ी मशरूफ़ ज़िंदगी ने जो वक़्त दिया फ़ुर्सत का,

बड़े इत्मीनान से लिखूंगा

अपनी आरज़ुएँ — जो की तो थीं , मगर जी नहीं कभी.

 चाहत जब तक बाक़ायम, तलब बेइंतिहा होगी

वरना मिलते ही महताब में भी लोग दाग़ ढूँढ़ लेते हैं।

 बारिश की बूंदें आसमां से यूँ गिर रही हैं,

जैसे 'अर्श' से 'ख़ाक' को मिलने की फ़रियाद हो.

 रियाकारी का ऐसा आलम था,

बेचारी विडम्बना सह ना पाई,

चापलूसों की महफ़िल में जाकर,

हँसते-हँसते जान गँवा आई।

 रोज़मर्रा की उलझनों ने हर पल को क़ैद कर रखा था,

सोचते ही रह गए, मगर चाहतों को रोक कर रखा था।


अब फ़ुर्सत में फ़ुर्सत है, मगर फ़ैसला लेना पड़ा,

कुछ अपने पुराने अफ़सानों को भी अलविदा कहना पड़ा।

 संभाल लेता हूँ हर परेशानी को बड़े अदब से मैं,

वो समझ बैठे हैं कि ये बंदा परेशान ही नहीं होता।

 Dekha use to bhool gaye khud ko ,fursat mili to socha khud ko bhi yaad kar le

 हर रविवार बदल जाता हूँ मैं,

सोमवार आए तो फिर वही बन जाता हूँ मैं।

रविवार और सोमवार में है अंतर बहुत,

मगर मिलते हो तुम जिससे रोज़ाना, हूँ वही मैं।

 नए पौधे हँस रहे थे पुराने पेड़ की जड़ों पर,

हल्का तूफ़ान जो आया, सारे के सारे नीचे पड़े थे उन्हीं जड़ों पर।

Wednesday, 28 May 2025

 जब कोई सोच चुका हो कि तुम्हारे बस में कुछ है ही नहीं, और तुम उसकी दया पर हो —

वहीं सबसे उपयुक्त समय होता है यह दिखाने का कि वो कितना गलत सोच रहा है।
हो सकता है कुछ दिन कठिनाइयों से गुजरने पड़े,
लेकिन उसके बाद जो भी होगा, वह तुम्हारा निर्णय होगा, और वो भविष्य उज्जवल ही होगा।

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥"

(भगवद्गीता 2.47)
अर्थात: केवल कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में नहीं।

इसलिए यह बार-बार, प्रत्यक्ष रूप से ना सही, परोक्ष रूप से जताते रहना कि “हम ही तुम्हारे रहनुमा हैं” —
ये आत्मसम्मान को धीरे-धीरे नष्ट करता है।

उससे बेहतर है
एक कठिन निर्णय,
थोड़ा कष्ट,
लेकिन पूर्ण स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम।

"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"

(भगवद्गीता 6.5)
अर्थ: मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं अपने को ऊपर उठाए, और स्वयं को नीचे ना गिराए।

यह जीवन तुम्हारा है —
और जब तक तुम अपनी सीमाओं को दूसरों की सोच से बाँधते रहोगे,
तब तक तुम अपने भीतर के शिव या शक्ति को पहचान नहीं पाओगे।

कुछ समय की तकलीफ, जीवनभर की गुलामी से कहीं बेहतर है।

"न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।"
(भगवद्गीता 3.5)
अर्थ: कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी बिना कर्म के नहीं रह सकता।

इसलिए निर्णय लो —
साहस के साथ,
सम्मान के साथ,
और उस चुप्पी को तोड़ दो,
जो तुम्हारे आत्मबल को दबा रही है।

 हम अक्सर कई बार दबा-दबा महसूस करते हैं —

कभी अपनी परिस्थितियों की वजह से,
तो कभी अपने अच्छेपन की वजह से।

हम चुप रहते हैं, क्योंकि हम टकराव नहीं चाहते।
हम सहते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि शायद यही सही है
मगर क्या कभी सोचा है —
कि हमारी यह चुप्पी ही हमें धीरे-धीरे मिटा रही होती है?

"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।"
(भगवद्गीता 3.35)
अर्थ: अपने दोषयुक्त धर्म का पालन करना, दूसरे के गुणयुक्त धर्म के पालन से बेहतर है।

हम अपने "अच्छेपन" को सीढ़ी बना लेते हैं,
जिस पर लोग चढ़ते हैं, और हमें नीचे छोड़ जाते हैं।

मगर अच्छा होना और मूर्खता में चुप रह जाना – दो अलग बातें हैं।

"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥"

(भगवद्गीता 4.7)
अर्थ: जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ।

यह श्लोक सिर्फ भगवान की नहीं, हमारी भी जिम्मेदारी बताता है —
कि जब बात आत्मसम्मान की हो,
तो हमें भी अपने भीतर के "विष्णु" को जगाना होगा।

अपने अच्छेपन को ताकत बनाओ, कमजोरी नहीं।
जो सही है, उसके लिए खड़े रहो —
चाहे तुम्हारी आवाज कांपे, या दिल थरथराए।

"नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः"
(उपनिषद्)
अर्थ: यह आत्मा (स्वतंत्रता, आत्मज्ञान) निर्बल व्यक्ति को प्राप्त नहीं होती।

Tuesday, 11 March 2025

दूसरों की मदद करना एक बढ़िया आदत है, लेकिन हर कोई वास्तव में आपकी मदद का हकदार नहीं होता या उसकी सराहना नहीं करता।

अक्सर, जब हम किसी को संघर्ष करते या गलत दिशा में जाते देखते हैं, तो हमारी सहज प्रवृत्ति उसे उस स्थिति से बहार निकालने की होती है। लेकिन कुछ लोग हमारे इरादों को गलत समझते हैं और उन्हें ऐसा लगता है की हम अपने आप को उनपे थोप रहे है। क्यूंकि हमने बिना मांगे ही सब कुछ देने की कोसिस की है।

सच्चाई यह भी है कि हर कोई अपनी स्थिति को बदलना या सुधारना नहीं चाहता। चाहे आप कितनी भी मदद करें, अगर वे मदद स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

दया और करुणा महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि अपनी ऊर्जा कहाँ निवेश करनी है। समझदारी से चुनें—उन लोगों की मदद करें जिन्हें वास्तव में इसकी ज़रूरत है, इसकी कद्र करते हैं और आपके समर्थन के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं।

 माइक्रोमैनेजमेंट अक्सर कार्य के प्रतिकूल वातावरण बनाता है। जब व्यक्ति हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ को नियंत्रित करते हैं या चेष्टा करते है  तो यह एक खलबली पैदा करता है और खलबली जब जायदा बढ़ जाती है जब इसमें बाकि सब की सिर्फ जबाबदेही होती है और आपके पास सारे अधिकार।  


व्यक्ति मैं विश्वास की कमी पैदा होती है कर्मचारी खुद को कमतर आंकते हैं और हतोत्साहित महसूस करते हैं, उन्हें अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं होता। जब हर कदम तय किया जाता है तो रचनात्मकता के लिए कोई जगह नहीं बचती।यह तनाव पैदा करता है  कर्मचारी और प्रबंधन के बीच , दोनों ही बर्नआउट का अनुभव करते हैं।परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, लोग अनावश्यक अप्रूवल पर समय बर्बाद करते हैं। स्वायत्तता और विश्वास की कमी से निराश होकर प्रतिभाशाली कर्मचारी नौकरी छोड़ देते हैं।

एक स्वस्थ कार्य संस्कृति अत्यधिक नियंत्रण पर नहीं, बल्कि विश्वास, सशक्तिकरण और स्पष्ट अपेक्षाओं पर पनपती है।

Tuesday, 25 February 2025

 पहली नौकरी जब आपने पहली बार जिम्मेदारी का एहसास किया था जब पहली बार किसी ने आप पे भरोसा किया था जब पहली बार आपको लगा था की अब सपने पुरे होंगे।


पहली नौकरी शायद पहले प्यार की तरह होती है जिसे आप कभी न भूलने वाले दिल के किसी कोने में संजो के रखते है। आपके खट्टे मीठे अनुभव , आपके बनने सवरने की जद्दोजहद वो जी जान लगा देना अपनी कंपनी के लिए। जी जान क्यों न लगा दे जब अनुभव न होने के बाद भी आपको किसी ने मौका दिया और भरोसा दिखाया की हाँ हमे यकीं है कुछ तो पक्का करोगे तुम। जब आपके अंदर के कोहिनूर को पहली बार मैं किसी ने पहचान लिया था।
उसके बाद आपके अंदर अपने आप को साबित करने की होड़ लग जाती है वो चाहे कुछ सीखना हो या किसी प्रोजेक्ट की अंतिम तारीख की डिलीवरी पे रात को रुकना।

और वो पहली सैलरी बेसक काफी कम थी मगर आज जो भी मिल रही हो उससे कंही जायदा एहमियत रखती थी तब। और वो पहले बोनस /वेतन वृद्धि पे अपनों के लिए कुछ ले जाना जो उस वक़्त लगता था जैसे कुछ हासिल किया हो।

पहली नौकरी काफी कुछ सीखाती भी है अगर आप सीखना चाहते है तो वो चाहे फिर जीवन के बारे मैं हो या फिर लोगो के बारे में या फिर आपके खुद के बारे मैं। अच्छे लोग जीवन का हिस्सा बन जाते है और जो अच्छे नहीं है वो आपको एक अनुभव देके जाते है जो आपको आपके आगे के जीवन मैं समय समय पे बताता रहता है क्या करना है क्या नहीं या किस पे किस हद तक भरोसा करना है।

सार यही है जब आपको कोई अनुभव न हो और आप एक दम कोरे कागज हो उस वक़्त जब कोई आप पे भरोसा दिखता है तो वो लम्हे काफी खास होते है क्यूंकि वो भरोसा आपके जीवन को दिशा देके उसकी दशा को बदल रहा होता है।
इसलिए कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पे ला खड़ा करे जब आप भी किसी का हाथ पकड़ के बोल सके कोई नहीं तू कर लेगा तब हिचकिचाना नहीं बस हाथ पकड़ के अपने साथ समान्तर खड़ा कर ले उसे। अच्छा लगेगा आपको भी और वो वही अनुभव करेगा जो आपने अपनी पहली नौकरी मिलने पे किया था।

Tuesday, 4 February 2025

लोग अपनी सुविधानुसार आपका इस्तेमाल करते हैं, कभी अपनी बातों से तो कभी अपने कामों से। ऐसा अक्सर तब होता है जब ये लोग आपके मुखिया होते हैं और आप उनके द्वारा आपका फायदा उठाने पर चुप रहते हैं।


People use you as per their convenience and sometimes through their words and some time through their action. This happens a lot when these people are head of you and you kept silence on their taking advantage of your. 

 हर बार नहीं, लेकिन कभी-कभी आपको अपने लिए आवाज़ उठानी चाहिए क्योंकि कोई भी आपकी चुप्पी से आपके दर्द या स्थिति को सही मायने में नहीं समझ सकता। लोग शब्दों के माध्यम से चिंता व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन वे अक्सर उन क्षणों में आवश्यक कार्रवाई नहीं करते हैं। और आपको लगता है कि वे आपके कहे बिना ही वह कर देंगे जो ज़रूरी है।


Not every time, but sometimes you should speak up for yourself because no one truly understands the pain or the situation you're going through from your silence. People may express concern through words, but they often don't take the necessary actions in those moments. And you believe they will do what’s needed without you having to tell them.

Monday, 3 February 2025

 कार्रवाई का निरीक्षण करें; क्रियाएँ शब्दों से ज़्यादा ज़ोर से बोलती हैं। शब्द झूठे हो सकते हैं, लेकिन क्रियाएँ सच्चे इरादे को प्रकट करती हैं। हमेशा एक समय आएगा जब आपको यह तय करना होगा कि जीवन में आगे कैसे बढ़ना है। आगे का रास्ता कठिन और असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन अगर आपको लगता है कि परिणाम सार्थक होगा, तो वह कदम उठाएँ।


Observe the action; actions speak louder than words. Words can be false, but actions reveal the true intention. There will always come a time when you have to decide how to proceed in life. The road ahead may be difficult and uncomfortable, but if you believe the outcome will be worthwhile, then take that step.

Thursday, 23 January 2025

 हमेशा कुछ लोग होते हैं जो सोचते हैं कि वे बहुत चालाक और चतुर हैं। वे सुविधा के आधार पर दो भूमिकाएँ निभाते हैं: एक में, वे पीड़ित होते हैं, और दूसरे में, वे अधिकारियों के चापलूस बनने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी, इन लोगों में बहुत प्रतिभा नहीं होती है और वे ज़्यादातर इन दो रणनीतियों पर भरोसा करते हैं, फिर भी वे खुद को उच्च सम्मान देते हैं। अगर उन्हें इन भूमिकाओं के लिए उपयुक्त माहौल मिलता है, तो वे उन्हें अच्छी तरह से निभाते हैं, खासकर अगर अधिकारी खुद की प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुक हों। हालाँकि, समय के साथ, यह माहौल उन्हें बहुत सहज बना देता है, और उनमें नौकरी के कौशल की कमी होने लगती है क्योंकि उनका मुख्य कौशल इन दोहरी भूमिकाओं को निभाना बन जाता है, जिसके द्वारा वे कार्यस्थल पर बने रहने के लिए निर्भर करते हैं।

There are always some people who think they are very smart and clever. They play two roles based on convenience: in one, they are victims, and in the other, they try to flatter the authorities. Sometimes, these people do not have much talent and rely mostly on these two strategies, yet they hold themselves in high esteem. If they find an environment suitable for these roles, they play them well, especially if the authorities are eager to hear praise of themselves. However, over time, this environment makes them too comfortable, and they start lacking job skills because their main skill becomes playing these dual roles, by which they depend to survive in the workplace.

 कब तक रहूँ  खड़ा दृढ़ हर वक़्त, इस मदमाते, आते बार बार तूफ़ान में ,

अंदर से रोता दिल पर ऊपर से हँसना, खड़ा हूँ दृढ मगर हूँ परेशान मैं.

 खड़ा हूं अडिग हर आते तूफान मैं सिर्फ आपके ही सहारे, 

सब सोप दिया आपको प्रभु, आप ही अब मेरी नोका तारे

 जब कोई व्यक्ति यह सोचने लगे कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहा है और दूसरों से केवल फीडबैक चाहता है, और आपको पता है कि उसका दृष्टिकोण गलत है, तो आप उसे याद दिलाने की कोशिश कर सकते हैं - या तो सीधे या परोक्ष रूप से। लेकिन जिस क्षण आपको एहसास होता है कि, उनके अनुसार, आप समस्या का हिस्सा हैं, सबसे अच्छा तरीका है 'हाँ-में-हाँ मिलाना'। इस तरह के लोग शायद ही कभी उस तरह से सुनते हैं जिस तरह से आप चाहते हैं, और वे कभी नहीं मानते कि उन्होंने कुछ गलत किया है। उनके पास हमेशा कोई बहाना होता है और वे अपनी हर विफलता के लिए किसी और पर उंगली उठाने में जल्दी करते हैं।

When someone starts thinking they are doing their best and only seeks feedback from others for the sake of it, and you know their approach is wrong, you might try to remind them—either directly or indirectly. But the moment you realize that, according to them, you’re part of the problem, the best approach is to become a 'yes-man.' People like this rarely listen the way you want them to, and they never believe they’ve done anything wrong. They always have an excuse and are quick to point fingers at someone else for their every failure.